पानी और दूध की मित्रता से सीख !
पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया। जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा- मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है । अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा ।
दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है, अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा दूध से पहले पानी उड़ता जाता है । जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है, तब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है।
पर इस अगाध प्रेम में थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं । थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है।
मित्रों, रिश्ते में खटास मत आने दो । क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख, कितने करोड़, कितने घर, कितनी गाड़ियां हैं, खाना तो बस दो ही रोटी है। जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है। फर्क इस बात से पड़ता है, कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये, कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए।
सुनने की आदत डालो क्योंकि ताने मारने वालों की कमी नहीं हैं। मुस्कराने की आदत डालो क्योंकि रुलाने वालों की कमी नहीं हैं । ऊपर उठने की आदत डालो क्योंकि टांग खींचने वालों की कमी नहीं है। प्रोत्साहित करने की आदत डालो क्योंकि हतोत्साहित करने वालों की कमी नहीं है । सच्चा व्यक्ति ना तो नास्तिक होता है ना ही आस्तिक होता है । सच्चा व्यक्ति हर समय वास्तविक होता है ।
छोटी छोटी बातें दिल में रखने से बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं । कभी पीठ पीछे आपकी बात चले तो घबराना मत बात तो उन्हीं की होती है जिनमें कोई "बात" होती है । "निंदा" उसी की होती है जो "जिंदा" हैं मरने के बाद तो सिर्फ "तारीफ" होती है ।
तो मित्रो हंसी ख़ुशी जिन्दगी जियो ।
ऋषि जायसवाल
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